पुरुष निःसंतानता और आईयूआई उपचार
पुरूष निःसंतानता भारत में आमतौर पर कम स्वीकार किया जाने वाला विषय है। कुछ वर्षों पहले तक तो पुरूष यह मानते ही नहीं थे कि निःसंतानता के लिए वे भी जिम्मेदार हो सकते हैं। समय के साथ जागरूकता बढ़ी और अब पुरूष भी जांच के लिए आगे आ रहे हैं और निःसंतानता के पुरूष कारकों को सहज स्वीकार कर रहे हैं। आधुनिक जीवनशैली, बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियाँ, देर तक काम तथा काम का दबाव, तनाव बढ़ने और पोषण युक्त खाद्य सामग्री की कमी के कारण शुक्राणुओं की संख्या और क्वालिटी में कमी आ रही है।
क्या है पुरुष निःसंतानता
एक सफल गर्भधारण के लिए स्वस्थ और अच्छी गतिशीलता वाले शुक्राणु द्वारा अण्डे को निषेचित करना अनिवार्य होता है । यदि शुक्राणुओं की संख्या कम होगी या उसकी क्वालिटी में खराबी होगी तो यह प्रक्रिया नहीं हो पाएगी जिससे गर्भधारण में समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। पुरुष निःसंतानता के कारण जानने के लिए कुछ परीक्षण किये जाते हैं जिसे सीमन एनालिसिस (वीर्य विश्लेषण) कहा जाता है। वीर्य विश्लेषण करने के लिए आज देशभर में कई प्रयोगशालाएं हैं लेकिन सभी के पास नवीनतम मशीनें नहीं हैं। सीमन एनालिसिस के लिए अच्छी और प्रमाणित प्रयोगशाला में ही जांच करवानी चाहिए।
पुरूष निःसंतानता की स्थिति में सबसे सरल और पहली एआरटी तकनीक आईयूआई ( इन्ट्रा यूटेराइन इंसेमिनेशन ) का उपयोग किया जाता है। यह प्राकृतिक गर्भधारण के समान ही है। इसमें पति के वीर्य के सेम्पल लेकर वॉश किया जाता है और अच्छे शुक्राणुओं का चयन किया जाता है फिर अल्ट्रासाउंड की गाईडेंस में ओव्यूलेशन (अण्डोत्सर्ग) के समय आईयूआई कैथेटर की सहायता से वीर्य में मौजूद अच्छी गुणवत्ता वाले गतिशील शुक्राणुओं को महिला के गर्भाशय में छोड़ा जाता है।आईयूआई उपचार – महिला निःसंतानता के कई कारण हो सकते हैं लेकिन पुरूषों में निःसंतानता के कारण शुक्राणुओं से संबंधित होते हैं। पुरूष निःसंतानता की स्थिति में भी अलग- अलग उपचार विकल्पों को अपनाकर पिता बना जा सकता है । उपचार विकल्पों का निर्धारण निःसंतानता के कारणों पर निर्भर करता है।
आईयूआई इन स्थितियों में उपयोगी –
- महिला की रिपोर्ट्स (अण्डाशय, गर्भाशय और ट्यूब) सामान्य हैं तथा पुरूष जिन्हें संभोग से संबंधित समस्याएं है जिससे सामान्य या नियमित संभोग नहीं हो पाता है।
- पुरुष जिनमें शुक्राणुओं की संख्या सामान्य से कम 10 से 15 मिलियन प्रति एम एल ( परन्तु 10 मिलियन प्रति एमएल से कम नहीं हो) या शुक्राणुओं की गतिशीलता कम है।
- पति- पत्नी दूर रहते हैं या पति जैसे जहाजों, विदेशों या सेना में काम करते हैं जिस कारण नियमित संभोग नहीं हो पाता है है ऐसे में मामलों में पति के वीर्य का सेम्पल लेकर शुक्राणुओं को फ्रिज करके शुक्राणु बैंक में संरक्षित किया जाता है और बाद में जब भी दम्पती चाहे आईयूआई तकनीक का उपयोग किया जा सकता है।
- महिला की बच्चेदानी के मुंह में विकार या एंटीस्पर्म एंटीबोडिज की स्थिति में
- उस स्थिति में जब निःसंतानता का कारण स्पष्ट नहीं हो पाता है ऐसी स्थिति में चिकित्सक आईयूआई करवाने के लिए सलाह देते हैं।
इन समस्या वाले दम्पतियों के लिए आईयूआई प्रभावी तकनीक साबित हो सकती है।
आईयूआई प्राकृतिक गर्भधारण के समान है इसलिए दम्पती इसे पहली प्राथमिकता देते हैं लेकिन इसकी सफलता दर अधिक नहीं है। यदि स्पर्म काउण्ट 10 मीलियन प्रति एम एल से कम हैं तो यह तकनीक कारगर नहीं है।
आईयूआई प्रक्रिया के तहत महिला साथी के अण्डाशय में फॉलिकल्स का विकास करने के लिए इंजेक्शन और दवाइयां दी जाती हैं । अण्डों के विकास को जांचों के माध्यम से देखा जाता है। जब फॉलिकल बन जाता है तो अंडे के फूटने के लिए ट्रिगर इंजेक्शन दिया जाता है। पुरूष साथी के शुक्राणुओं को महिला के गर्भाशय में तब छोड़ा जाता है जब अंडा फूटने की पुष्टि अल्ट्रासाउण्ड द्वारा की जाती है। आईयूआई की सफलता में सबसे महत्वपूर्ण पहलू ओव्युलेशन के समय शुक्राणुओं को छोड़ा जाना है
ऐसी दम्पती जिन्हें 3 & 4 आईयूआई साइकिल्स के बाद भी सफलता नहीं मिल पायी है उन्हें डॉक्टर से परामर्श लेकर गर्भधारण के लिए उन्नत तकनीक आईवीएफ, आईसीएसआई (इक्सी) की तरफ रूख करना चाहिए।