संतान सुख की कल्पना दम्पतियों को जितने आनंद से भर देती है संतानहीनता उससे कहीं अधिक दर्द देती है। काफी प्रयासों के बाद भी जब दम्पती को गर्भधारण नहीं होता है तो वे परेशान रहने लगते हैं उनके रिश्ते में दूरियां बढ़ने लगती हैं कई मामलों में तो परिवार टूटने की स्थितियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। भारत में वर्षां से निःसंतानता के लिए महिलाओं को जिम्मेदार ठहराया जाता है यहां तक की उसे ताने भी सहने पड़ते हैं और कई मामलों में तो उनके पति द्वारा दूसरी शादी करने की घटनाएं भी सामने आयी हैं। निःसंतानता का उपचार 1978 से उपलब्ध है जिसे आईवीएफ के रूप में जाना जाता है इस तकनीक से दुनियाभर में लाखों संतानें जन्म ले चुकी हैं। निःसंतानता से प्रभावित होने के बाद सबसे जरूरी होता है कि गर्भधारण क्यों नहीं हो पा रहा है इसके कारणों को जानना ?
देश और दुनिया में हुए कई शोधों में यह सामने आया है कि निःसंतानता के लिए महिला और पुरूष दोनों जिम्मेदार हो सकते हैं। इसके लिए महिलाएं 30-40 और पुरूष 30-40 प्रतिशत तक तथा कुछ मामलों में दोनों जिम्मेदार हो सकते हैं। कुछ में कारण पता नहीं चल पाते हैं।
आईए जानते हैं महिलाओं और पुरूषों में निःसंतानता के कारणों के बारे में
किसी भी निःसंतान दम्पती के लिए सही उपचार प्रक्रिया का निर्णय तभी किया जा सकता है जब उनके निःसंतानता के कारणों के बारे में पता चल सके। महिला और पुरूष दोनों में निःसंतानता के कारण अलग-अलग होते हैं और इसकी पहचान के लिए दोनों की जांचे की जाती हैं।
पुरूष निःसंतानता
महिलाओं में निःसंतानता के कई कारण हो सकते हैं लेकिन पुरूषों में निःसंतानता के कारक शुक्राणुओं से जुडे़ हुए होते हैं।
पुरूषों में निःसंतानता के लिए शुक्राणुओं की संख्या कम होना, गुणवत्ता में कमी होना, शून्य शुक्राणु (निल शुक्राणु) प्रमुख कारण होते हैं ।
शुक्राणु संबंधी विकार उसके उत्पादन से संबंधित हो सकते हैं जिसके निम्न कारण हो सकते हैं-
अंडकोष मे चोट- अण्डकोष में किसी तरह की चोट से शुक्राणुओं का उत्पादन बाधित हो सकता है।
अण्डकोष की थैली में सूजन
शुक्राणुओं के बाहर निकलने के स्थान पर पेशाब की थैली में चले जाना
टेस्टोस्टेरॉन हार्मान की कमी
स्खलन में समस्या
अंडकोष में संक्रमण – अण्डकोष में कुछ संक्रमण शुक्राणु की क्वालिटी और संख्या को प्रभावित कर सकते हैं।
महिला निःसंतानता
ट्यूबल कारण – महिला की फर्टिलिटी में सबसे महत्वूपर्ण उसकी फैलोपियन ट्यूब होती है क्योंकि फर्टिलाईजेशन ट्यूब में ही होता है। ट्यूब ब्लॉक होना या उसमें कोई दूसरा विकार निःसंतानता का कारण बन सकता है। यह महिला निःसंतानता के प्रमुख कारणों में से एक है।
हार्मोनल असंतुलन – महिलाओं में गर्भधारण में विफलता का एक प्रमुख कारण हार्मोनल असंतुलन है। महिला की फर्टिलिटी को नियन्त्रित करने वाले हार्मोन के उत्पादन में अनियमितता गर्भधारण में परेशानी खड़ी कर सकती है।
पीसीओएस – आजकल कम उम्र की महिलाओं में पीसीओएस की समस्या प्रमुख रूप से सामने आ रही है। है। इसमें शरीर मे पुरूष हार्मोन का उत्पादन स्त्री हार्मोन के अनुपात में अधिक होता है जिससे ओव्युलेशन नहीं होता है और अंडाशय में छोटी-छोटी सिस्ट बन जाती हैं इसके कुछ लक्षण है जिनमें अनियमित पीरियड्स के साथ भारी ब्लीडिंग, चेहरे, पीठ और सीने पर अनचाहे बाल, वजन बढ़ना आदि है।
एंडोमेट्रियोसिस- महिलाओं में होने वाली ऐसी समस्या है जिसमें यूट्रस के अंदर बनने वाली लाईनिंग इसके बाहर बनने लगती है यह लोवर अबडोमन या पेल्विस, फैलोपियन ट्यूब्स, ओवरीज या शरीर के किसी और हिस्से में भी बनने लगती है। यह लाईनिंग जब फैलोपियन ट्यूब्स या ओवरिज से चिपकती है तो उनकी गतिविधि में बाधा डालती है।
फ्राइब्रोइड्स – फाइब्राइड्स या गर्भाशय का ट्यूमर आमतौर पर फर्टिलिटी को बाधित नहीं करते हैं पर बड़े ट्यूमर जो गर्भाशय कनाल को विकृत करते हैं या गर्भाशय के कनाल के अंदर बढ़ने लगते हैं ये निःसंतानता या बार-बार गर्भपात के कारण बन सकते हैं।
गंभीर बीमारी या संक्रमण – कैंसर, टीबी, डायबिटिज, ब्लड प्रेशर, मोटापा जैसी लंबी बीमारी और संक्रमण भी निःसंतानता का कारण बन सकते हैं।
निःसंतानता के लिए आधुनिक जीवनशैली, खराब खानपान, तनाव, धूम्रपान और शराब भी जिम्मेदार है।
उपचार
निःसंतानता का उपचार संभव है बशर्ते इसके कारणों का सही समय पर पता चल जाए, कारणों के आधार पर इलाज की योजना बनायी जा सकती है।
1. पुरूषों में निःसंतानता के कारण जानने के लिए सबसे पहले पुरूष के सीमेन (वीर्य) का सम्पूर्ण विश्लेषण किया जाता है, जिसमें शुक्राणुओं की संख्या, गतिशीलता और गुणवत्ता देखी जाती है।
2. यदि शुक्राणुओं की मात्रा सामान्य से कम है तो आईयूआई और सामान्य से ज्यादा ही कम हैं तो आईवीएफ और इक्सी की सलाह दी जाती है।
3. महिला को यदि हार्मोन संबंधी समस्या है तो उसके लिए दवाइयां दी जाती हैं। प्राकृतिक रूप से गर्भधारण नहीं होने पर आईवीएफ प्रक्रिया के तहत सामान्य से अधिक अण्डे बनाने के लिए दवाइयां और इंजेक्शन दिये जाते हैं, अण्डे बनने पर प्रक्रिया के तहत उन्हें निकाल कर लैब में रख लिया जाता है और पुरूष साथी के शुक्राणु से लैब में निषेचित करवाया जाता है। इस प्रक्रिया बने भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थानान्तरित किया जाता है जिससे गर्भधारण हो जाता है। आईवीएफ स्वाभाविक गर्भधारण में विफल दम्पतियां के लिए सफल तकनीक बनकर सामने आयी है।