हमारे देश में इनफर्टिलिटी की समस्या में दम्पती बात करने में हिचक रखते हैं कई मामलों में तो दम्पती की संतान प्राप्ति की पूरी उम्र निकल जाती है लेकिन वे अपनी समस्या किसी को बता नहीं पाते । हमारे देश में जागरूकता के अभाव में निःसंतानता के लिए महिला को ही दोषी माना जाता है जबकि कई शोध और सर्वे में यह बात सामने आ चुकी है कि निःसंतानता का कारण महिला . पुरूष दोनों में से कोई भी या दोनों भी हो सकते हैं। हालांकि समय के साथ लोग यह समझने लगे हैं कि निःसंतानता का उपचार आईवीएफ जैसी तकनीकियों से किया जा सकता है और समस्या का कारण जानने के लिए पति.पत्नी दोनों की जांचे जरूरी हैं। पिछले 2 दशकों में आईवीएफ को दम्पतियों के द्वारा सहजता से अपनाया जा रहा है।
क्या होता है जांचों में
आदमी से सीमन सेम्पल लिया जाता है जिसमें शुक्राणुओं की संख्याए गतिशीलताए बनावटए जीवित शुक्राणुओं की संख्या आदि का विश्लेषण किया जाता है।
महिला के खून की सामान्य जांचों के साथ गर्भाशयए अण्डाशयए ट्यूब्स की स्थिति देखी जाती है । गर्भाशय जहां बच्चे को 9 महीने तक विकसित होना है वह सही है या नहींए अण्डाशय जहां अण्डे बनते हैं वह ठीक है या नहींए अण्डों की क्वालिटी तथा ट्यूब्स जहां निषेचन की प्रक्रिया होती हैए सही से काम कर रही है या नहींए यह सब देखा जाता है।
इनफर्टिलिटी के इलाज में काम आने वाली विभिन्न तकनीकें –
- 1. आईयूआई – प्राकृतिक गर्भधारण में विफल होने पर आमतौर पर सबसे पहले आईयूआई यइंट्रायूटेराइन इंसीमिनेशनद्ध तकनीक अपनाने का सुझाव दिया जाता है। दम्पती में महिला की सारी रिपोर्ट्स नोर्मल होनेए अनएक्सप्लेण्ड इनफर्टिलिटी और पुरूष निःसंतानता जिसमें लगभग 10 से 15 मिलियन शुक्राणु प्रति एमएल की स्थिति में आईयूआई अपनाया जाता है। आईयूआई प्रक्रिया के दिन पुरूष साथी से लिए गये सीमन सेम्पल से सीमन तैयारी के तहत शुक्राणुओं को वॉश करके अच्छे शुक्राणुओं का चयन किया जाता है और गर्भाशय गुहा में एक विशेष कैथेटर द्वारा शुक्राणुओं को इंजेक्ट कर दिया जाता हैए जिससे गर्भधारण हो जाता है । आईयूआई प्रक्रिया प्राकृतिक गर्भधारण के समान ही है लेकिन इसकी सफलता दर अधिक नहीं है।
2. आईवीएफ- यह निःसंतान दम्पतियों में सर्वाधिक प्रचलित और अधिक सफल तकनीक मानी जाती है। वे दम्पती जिन्हें एक साल तक प्रयास करने पर गर्भधारण में सफलता नहीं मिल रही है, महिला की ट्यूब ब्लॉक हो, एडिनोयोसिस, एंडोमेट्रियोसिस, पीसीओडी, अधिक उम्र आदि में तथा पुरूष निःसंतानता में भी आईवीएफ तकनीक को अपना सकते हैं। प्रक्रिया के तहत महिला के शरीर में बनने वाले अण्डों की संख्या बढ़ाने के लिए इंजेक्शन और मेडिसिन दी जाती है। अण्डों के विकास पर नजर रखते हुए ओवम पिकअप के दिन महिला के अंडाशय से छोटी सी प्रक्रिया के तहत अण्डे निकाल लिये जाते हैं और मेल पार्टनर से वीर्य का सेम्पल लिया जाता है। महिला के अण्डे और पुरूष के शुक्राणु का शरीर से बाहर लैब में निषेचन करवाया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत हजारों जीवित, अच्छी गतिशीलता वाले अच्छी बनावट के शुक्राणु सफल निषेचन के लिए अण्डे के साथ रखे जाते हैं। इस प्रक्रिया से निषेचन की प्रक्रिया पूरी हो जाती है और भ्रूण बन जाते हैं और अच्छे भ्रूणों को महिला के गर्भाशय में स्थानान्तरित किया जाता है ताकि गर्भधारण हो सके।
3. इक्सी- आईवीएफ की तुलना में पुरूष निःसंतानता के मामलों में अधिक कारगर तकनीक है। इस प्रक्रिया के तहत लैब में एक शुक्राणु को अण्डों के सामने छोड़ने के बजाय सीधे एक परिपक्व अण्डे में इंजेक्ट किया जाता है। वे पुरूष जिनके शुक्राणु 1 से 5 मिलियन प्रति एमएल के बीच हैं और गतिशीलता भी कम है उन मामलों में उपयोग में ली जाती है। जिन पुरूषों के अण्डकोष में शुक्राणु बनते तो हैं लेकिन बाहर नहीं आ पाते हैं उनके शुक्राणुओं को बाहर निकालने क लिए शुक्राणुओं का सर्जिकल रिट्रीवल किया जाता है और लैब में इक्सी तकनीक से महिला के अण्डे को निषेचित करवाया जाता है।
4. ब्लास्टोसिस्ट कल्चर- सामान्यतया आईवीएफ प्रक्रिया में भ्रूण के विकास को ध्यान में रखते हुए तीन दिन लैब में रखकर महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है लेकिन ब्लास्टोसिस्ट प्रक्रिया में भ्रूण को 3.5 दिन तक विकसित किया जाता है इस दौरान भ्रूण के विकास को बारीकी से देखा जात है इस प्रक्रिया से भ्रूण के गुणवत्तायुक्त बनने की संभावना अधिक होती है। इसमें सफलता दर अधिक मिलने की संभावना होती है।
5. लेजर असिस्टेड हैचिंग- निषेचन से बने भ्रूण को अपने खोल को तोड़कर बच्चेदानी में चिपकना होता है लेकिन कुछ महिलाओं के भ्रूण का खोल सख्त होने के कारण भ्रूण उसे तोड़ नहीं पाता है और गर्भधारण विफल हो जाता है। भ्रूण के ऊपर के खोल को जोना पेलुसीडा कहा जाता है जिसे लेजर हैचिंग की मदद से पतला कर दिया जाता है इसके बाद भ्रूण स्थानान्तरण किया जाता है ताकि भ्रूण खोल को तोड़ कर बाहर आ सके। यह तकनीक 35 वर्ष से ज्यादा उम्रए पूर्व में कैंसर या टीबी की बीमारी वाली औरतों या फिर बार.बार प्रत्यारोपण में असफल मरीजों में लाभकारी है।
6. क्रायोप्रिजर्वेशन- आज के समय में महिला. पुरूष आजादी का जीवन जीना चाहते हैं वे पहले तो शादी और बाद में फैमिली प्लानिंग को डिले करते हैं इस कारण उन्हें संतान प्राप्ति में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। युवा महिला.पुरूष जो करियर या किसी ओर कारण से बाद में परिवार को पूरा करना चाहते हैं उनके लिए क्रायोप्रिजर्वेशन बेहतरीन विकल्प बनकर सामने आया है। इसमें भ्रूणए अण्डे और शुक्राणु को संतुलित और सुरक्षित तापमान में फ्रीज किया जाता है ताकि भविष्य में इस्तेमाल किया जा सके। क्रायोप्रिजर्वेशन में सेम्पल्स को कोई नुकसान नहीं होता है और गुणवत्ता समान बनी रहती है। क्रायोप्रिजर्वेशन का लाभ वे मेल . फिमेल ले सकते हैं जो वर्षों बाद भविष्य में संतान सुख चाहते हैं।
आईवीएफ की विभिन्न तकनीकें निःसंतानता की स्थिति में संतान प्राप्ति का आसान जरिया बन सकती हैं। कोई भी उपचार प्रक्रिया का निर्धारण विशेषज्ञ के परामर्श के बाद करना सफलता के लिए आवश्यक है।